Sunday, August 18, 2019

सामान्य सी सुबह अपने अंदर समेटे न जाने कितनी होनी और अनहोंनियों को सड़क पर चलते इक्का दुक्का वाहन जो तेज़ रफ़्तार से गुज़र रहे थे।

लघु- कथा

【महादान】
सामान्य सी सुबह अपने अंदर समेटे न जाने कितनी होनी और  अनहोंनियों को सड़क पर चलते इक्का दुक्का वाहन जो
तेज़ रफ़्तार से गुज़र रहे थे।

24 वर्षीय अनुज अपने गंतव्य तक पहुँचने को आतुर...।
"अनुज हेलमेट लिया क्या..?
माँ  का स्वर याद करते ही अनुज मुस्कुरा दिया,
 माँ भी न...!
पीछे से आते हुए अंधी रफ़्तार के एक टैंकर ने अनुज की बाइक को ज़ोर की टक्कर मारी और उसे रौंदता हुआ आँखों से ओझल हो गया।एक क्षण में अनुज का शरीर दो हिस्सों में विभाजित सड़क पर पड़ा था।रास्ते पर रक्त की चादर सी फैल गई।लोग आस पास जमा हो गए...मोबाईल चमक उठे फ़ोटो सेशन हो रहा था...मूवी बनाई जा रही थी।अनुज के ऊपरी शरीर में जान बाक़ी थी।वह कराह रहा था...
यार मुझे बचा लो
भाई कोई 108( एम्बुलैंस) को फ़ोन कर दो।
कोई प्रतिकिर्या नहीं फ़ोटो खिंचते रहे..और हम मानव हो कर भी मानवता से बहुत दूर खड़े केवल तमाशा देख रहे  थे।
लगभग 45 मिनट बाद एक पुलिस वाले के 108 को कॉल करने पर वह आ गई।
तुरंत नर्सों और सहायकों ने अनुज के शरीर के दोनों हिस्से समेट लिए।
वह कराह रहा था...डूबती आँखों से उसने नर्स की ओर देखा और लड़खड़ाती आवाज़ में बोला,
"मैं जानता हूँ .....नहीं बचूँगा "
मैं अपनी आँखें दान करता हूँ...!
इन अंतिम शब्दों के साथ वह चिरनिद्रा में लींन हो गया।एक संतोष जनक मुस्कान उसके अधरों पर ठहर गई थी।
अनुज हम आँख वाले अन्धो को एक शिक्षा दे गया,हमारे विवेक को जाग्रत करने की शिक्षा।
7
और अनुज का यह महादान दो दृष्टिहीन व्यक्तियों के जीवन में प्रकाश बिखेर गया........


लेखिका/प्रस्तुति ---
डॉक्टर अम्बर आबिद
(पी एच डी)
भोपाल- म0 प्रदेश


रिपोर्ट
ज़ीशान काजमी जलालाबाद

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