Wednesday, August 21, 2019

कैराना  में स्कूली बच्चों की सुरक्षा से हो रहा खिलवाड़।खतरे में लाडलों की जान, जिम्मेदार हैं अनजान।

कैराना  में स्कूली बच्चों की सुरक्षा से हो रहा खिलवाड़।
खतरे में लाडलों की जान, जिम्मेदार हैं अनजान।


कैराना । बुधवार

(रिपोर्ट- शमशाद चौधरी कैराना)



अभिभावक आज हर पालक अपने बच्चे के स्कूल पहुंचने से वापस आने तक चिंतित रहता है। क्योंकि स्कूली बच्चों की सुरक्षा को ताक पर रखकर स्कूल संचालक मनमानी कर रहे हैं। अंचलों से वाहनों से आने वाले बच्चों की सुरक्षा को लेकर वर्षों पहले सुप्रीमकोर्ट ने एक गाइड लाइन बनाई थी, जिसका पालन करना प्रत्येक प्राइवेट संस्था संचालक के लिए जरूरी था।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस गाइड लाइन का पालन किसी भी शाला प्रबंधन द्वारा नहीं किया जा रहा है। वहीं स्कूली वाहनों को रोज बच्चों की जान से खिलवाड़ करते हुए जिला मुख्यालय से लेकर ग्रामीण अंचलों में देखा जा सकता है। जबकि कोर्ट के नियमानुसार स्कूली वाहन को पीले रंग से पेंट होना चाहिए। साथ ही उस वाहन पर शाला का नाम अंकित होना चाहिए।

क्षमता से अधिक बच्चे बैठाना, बच्चों से दुव्र्यवहार करना सहित गंतव्य स्थान तक बच्चों को न छोडऩा वाहन चालकों की आदत में शुमार हो चुका है। इस दौरान यदि कोई बच्चा शिकायत कर दे तो वाहन चालक द्वारा बच्चे को डांटकर चुप करा दिया जाता है जबकि पालकों से नियमित तौर पर बच्चों को ले जाने एवं घर पर छोडऩे के एवज में हर माह एक मोटी रकम  वसूल की जाती है।

ब्लॉक स्तर से लेकर ग्रामीण कैराना  की प्राइवेट शालाओं में आटो सहित अन्य वाहन गैस किट से संचालित हो रहे हैं।बच्चो को लाने ले जाने का कार्य करते हुए उनकी जान से खिलवाड किया जा रहा है। जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार स्कूली वाहनो मे गैस का उपयोग पूर्णत: वर्जित है। इस सब के बावजूद शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों के कानों पर जू तक नहीं रेंग रही।
प्राइवेट स्कूलों में शाला प्रबंधन वाहन व्यवस्था को लेकर अक्सर बचते रहता है।अधिकांश शालाओं में स्वयं के वाहन ही नहीं है तो पालकों से स्वयं के वाहन व्यवस्था करने के लिए कहा जाता है।
इसके अलावा अगर वह व्यवस्था करने में असमर्थ दिखते हैं तो स्कूल प्रबंधन द्वारा वाहन व्यवस्था की जाती है। अब वह किस प्रकार से वाहन चला रहे हैं, बच्चों को किस प्रकार से बैठा रहे हैं, इससे उन्हें कोई सरोकार नहीं होता।

घटना के बाद जागेगा प्रशासन
शिक्षा विभाग के आला अधिकारी एवं जिला प्रशासन किसी बड़ी घटना के बाद ही जागता है। वह भी दो-चार दिन औपचारिकता पूरी करने के बाद पुराने ढर्रे पर उतर आते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कड़े शब्दों में प्रदेश में संचालित शाला प्रबंधन को एवं जिले के समस्त अधिकारियों को एक गाइड लाइन के तहत निर्देशित किया है कि अगर शाला के पास वाहन नहीं है, और वह किराए से वाहन की व्यवस्था करता है, तो उसपर पीला पेंट, शाला का नाम, गैस किट रहित वाहन, उसमे फस्र्ट एड बॉक्स होना आवश्यक है। वहीं वाहनों में अग्निशमन यंत्र तथा रफ्तार का विशेष ध्यान रखना जरूरी है।
इसके अलावा वाहनों में बच्चों के बैग रखने की समुचित व्यवस्था, वाहनों को सीसीटीवी लैस होने के साथ क्षमता से अधिक बच्चों को नहीं बैठाना चाहिए। यदि इन सभी बिन्दुओं का पालन किसी शाला प्रबंधन द्वारा नहीं किया जाता तो उनके विरुद्ध चालनी सहित कठोर कार्रवाई के प्रावधान किए गए हैं।
जिले से लेकर हर एक विकास खंड एवं अंचलों में दर्जनों शालाओं के वाहन आज भी गैस किटों द्वारा संचालित हो रहे हैं। क्षमता सेअधिक बच्चों को बैठाना तो आम बात है।


बच्चों की सुरक्षा के बड़े दावे करने वाले निजी स्कूलों द्वारा की जा रही नियमों की धज्जियां हर रोज छुंट्टी के वक्त देखी जा सकती है। कम जगह पर जानवरों की तरह बच्चों को ठूंसकर बैठाए जाने के बाद सड़कों पर रफ्तार भरते इन छोटे निजी वाहनों के प्रति न तो अभिभावक ही सतर्क है और न हि जिम्मेदार।
जिम्मेदारों का हाल यह है कि जून के बाद से अब तक नियम हवा में उड़ा रहे निजी वाहनों की धरपकड़ के लिए अभियान ही नहीं चलाया है। वहीं स्कूलों की बात की जाए तो दावा आधुनिक पढ़ाई और हाइटेक सुरक्षा का होता है लेकिन हकीकत में पूरे जनपद में स्कूल के नाम पर महज 101 वाहन पंजीकृत हैं जबकि बाकी स्कूल निजी वाहनों में बच्चों को ढो रहे हैं। सड़कों पर दर्जनों वाहन ऐसे भी हैं जिनमें मानक के विपरीत चालक एलपीजी गैस सिलेंडर से दौड़ा रहे हैं।

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