Wednesday, September 18, 2019

शहीद भगत सिंह की फांसी का दिन याद कर आज भी रोए अब्बास अली

शहीद भगत सिंह की फांसी का दिन याद कर आज भी रोए  अब्बास अली




तारीख 23 मार्च 1931 को देशभक्त आजादी के क्रांतिवीर सरदार भगतसिंह को फांसी दी गयी। उस दिन बुलंदशहर के खुर्जा की पाठशाला में 11 साल के अब्बास अली रोज की तरह पढ़ने आये थे। लेकिन सारे छात्रों को बताया गया कि आज भगतसिंह को फांसी दी गयी है और स्कूल में पढ़ाई के बजाय आजादी के तराने गाये जायेगे। अब्बास ने भी पूरे दिन आजादी के तराने गाये और स्कूल की छुट्टी होने के बाद शहर में आजादी के मतवालों के जुलूस में शामिल हो गये।

देर शाम तक पूरे शहर में अंग्रेजों के खिलाफ जुलूस चलता रहा और अब्बास उसी जुलूस में शरीक रहे। उधर, अपने बेटे के घर न पहुँचने से परेशान परिजनों ने अब्बास को बहुत ढूँढा, लेकिन वह नही मिले। अंधेरा होने पर अब्बास घर की ओर जाते समय अपने अब्बा को मिल गये। अब्बा ने बिना कुछ कहे-सुने अब्बास को घर पहुँचाया। लेकिन उनकी अम्मी ने उनसे उनकी गैरहाजिरी के बाबत जबाब-तलब किया तो अब्बास ने पूरे दिन की कहानी बयान कर दी।

आजादी के मतवालों के जुलूस में शामिल होने के लेकर उनकी अम्मी ने उन्हें बहुत पीटा और फिर बाद में अपने कलेजे से लगा लिया। रात को सोते समय अब्बास ने अपनी अम्मी से पूछा कि क्या आजादी की लड़ाई में शामिल होना गुनाह है। अम्मी ने कहा- पहले बड़े होकर कुछ बन जाओ और फिर गोरों से मोर्चा लेना।

11 साल का यह बालक अब्बास खुर्जा के कलंदरगढ़ी गाँव के रहने वाले कैप्टन अब्बास अली थे। जिन्होने अपनी मां की बात दिल से लगाकर रखी और अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिंद फौज में शामिल हो गये। कैप्टन अब्बास अली ने देश की आजादी के लिए नेताजी के साथ कई लड़ाईयां लड़ी और कई बार जेल भी गये। 
कैप्टन की उपाधि उन्हें आजाद हिंद फौज के कैप्टन होने के नाते नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने दी थी।

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