Saturday, September 7, 2019

"मैं उस दिन का गवाह हूं!" कैराना इतना चुप कभी नहीं हुआ! 50 हजार की आबादी के कैराना मैं हर घर में मातम था '

"मैं उस दिन का गवाह हूं!
कैराना इतना चुप कभी नहीं हुआ!


 50 हजार की आबादी के कैराना मैं
 हर घर में मातम था '


कैराना। किसी चूल्हे में आंच नहीं थी। कैराना की आबादी 50000 थी, मगर उस दिन कैराना में लाखों लोग थे। किसानों का सबसे बड़ा नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत अपने सर को दोनों हाथों के बीच दबाए उदास बैठा था। कैराना के कद्दावर नेता हुकुम सिंह को लोगों ने मनव्वर के लिए रोता हुआ देखा।"

उस समय की मुख्यमंत्री मायावती अपना उसूल तोड़कर मनव्वर की मिट्टी में शरीक होने आयी थीं। 3 किमी तक रस्सी बांधकर मायावती के लिए रास्ता बनाया गया था। पूरा कैराना बंद था एक दुकान कहीं नहीं खुली थी, कैराना बिल्कुल चुप था। इससे पहले कैराना इतना चुप कभी नहीं हुआ था और इतना बड़ा नेता भी कैराना में इससे पहले कभी नहीं हुआ था। उस दिन आधी रात के बाद बसपा सरकार के ऊर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय की बेटी की शादी में शिरकत कर लौट रहे सांसद मनव्वर हसन की कार और एक ट्रक में हुई टक्कर में उनकी मौत हो गई। मौत से कुछ दिन पहले ही उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया था। मनव्वर हसन भारत के राजनीतिक इतिहास के ऐसे एकमात्र नेता हैं जिन्होंने भारत के चारों सदन -राज्यसभा, लोकसभा, विधानसभा और विधान परिषद का प्रतिनिधित्व किया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों में उनकी अदुभुत लोकप्रियता थी। कैराना के शायर रियासत अली कहते हैं कि एमपी साहब को 10 हजार से ज्यादा नाम जबानी याद थे। आज उनके बेटे नाहिद हसन के राणा से विधायक हैं मौत के समय मनव्वर 4 4 साल के थे। कैराना के मौलाना नसीम बताते हैं उनकी पसंदीदा का आलम यह है, कि आप रिक्शा वाले से कहिए कि एमपी साहब के घर जाना है वह मनव्वर हसन के घर पहुंचा देंगे, जबकि एमपी और भी है, मगर दिल में मनव्वर बसे हैं। कैराना के मशहूर आइसक्रीम विक्रेता जाहिद कहते हैं, मनव्वर अहसान जैसा नेता यहां कभी पैदा नहीं हो सकता। उनमें लोगों को अपना बना लेने की कला थी। रेडी पर कवर बेचने वाले मकसूद कहते हैं, एमपी साहब मेरे दोस्त थे गाड़ी रोककर अक्सर कवर खाते थे, वह ऐसे बात करते थे, जैसे अपने हो। जाहिद कहते हैं, इसलिए लोग उन्हें गरीबों का मसीहा कहते थे, एकदम जमीनी नेता वह किस तरह के नेता थे, यह राशिद अली बताते हैं 2007 में मनव्वर  अलमासपुर में हमने एक ट्रैक्टर एजेंसी की ओपनिंग के लिए बुलाया वह उस समय सांसद थे 100 से ज्यादा गाड़ियों का लंबा काफिला आया। हम मनव्वर को बड़ी गाड़ियों में समझ रहे थे, मगर वे मारुति 800 से उतरे मीरापुर के पूर्व चेयरमैन जहीर कुरैशी कहते हैं, मनव्वर किसी को नहीं कहते थे, कि मेरे साथ चलो लोग खुद ब खुद उनके साथ चल देते थे। जानसठ के अब्दुल्लाह ठेली पर केले बेचते थे, वह बताते हैं एक दिन मनव्वर से कहीं मिले तो मनव्वर ने हमारा नाम याद कर लिया, अब एमपी साहब भीड़ के सामने केह और अब्दुल्लाह भाई कैसे हो तो दीवानगी लाजिम की कैराना मैं मनव्वर हसन अक्सर लोगों के घर में चले जाते, और कहते ला लाल्ली (स्थानीय भाषा में बहन) खाना दे भूख लग रही है। नसीम कहते हैं, कि इससे उन्हें पता चल जाता था, कि उनके लोगों की वास्तविक हालत क्या है। मनव्वर हसन के पिता अख्तर हसन बसपा सुप्रीमो मायावती को 2 लाख  वोटों से हराकर सांसद बने थे। उनका चौधरी परिवार इलाके का सबसे बड़ा जमीदार परिवार है। मनव्वर के दादा चौधरी बुंदु  और वर्तमान सांसद हुकुम सिंह आपस में भाई है। 1991 में मनव्वर हसन ने अपने पहले विधानसभा चुनाव में अपने दादा हुकुम सिंह को जोरदार हार का मजा चखा या दिया। 1993 में फिर से चुनाव हुआ फिर कैराना से मनव्वर ने हुकुम सिंह को हरा दिया। 1996 में वह सांसद बन गए और 1998 में उन्हें समाजवादी पार्टी ने राज्यसभा में भेज दिया। समाजवादी पार्टी में उनके साथी राशिद सिद्दीकी कहते हैं, मनव्वर भाई का जलवा ऐसा था, कि नेता जी मुलायम सिंह यादव शिवपाल जी की बात टाल सकते थे, मगर उनकी नहीं जो अधिकारी जनता के काम नहीं करता था। वह उनके एक फोन पर हटा दिया जाता था। कैराना के नफीस राना के अनुसार उन्होंने गरीबों की इतिहा दुआ ली। यह सूदखोरों का आतंक था। वह गरीब को ₹5000 देते और 50000 कर देते थे, फिर उसका घर हड़प लेते थे। यह आतंक एमपी साहब ने खत्म कराया 50 से ज्यादा गरीबों के घर उनके वापस कराए, उनकी मौत के बाद यह मातम इसलिए था। 2003 में एमएलसी बन गए, इसके बाद गिनीज बुक में उनका नाम दर्ज हुआ और उपहार में लंदन में उन्हें जगह मिली जब मनव्वर हसन की मौत हुई तो उनके इकलौते बेटे नाहिद हसन ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई कर रहे थे। उनकी करीबी बताते हैं कि वे कभी नहीं चाहते थे कि नाहिद सियासत करें दरअसल वह हर रंग देख चुके थे। उनकी मौत के तुरंत बाद मायावती ने उनकी पत्नी तबस्सुम हसन को उनकी जगह लोकसभा प्रत्याशी घोषित कर दिया। 2009 के आम चुनाव में तबस्सुम हसन ने हुकुम सिंह को हरा दिया। हाल ही में उनकी बेटी इकरा हसन जिला पंचायत का चुनाव लड़ चुकी है। 1 दिसंबर को आए निकाय चुनाव परिणाम में उनके भाई अनवर हसन कैराना के चेयरमैन चुने गए हैं। मुजफ्फरनगर में उनके बंगले पर एक समय सबसे ज्यादा फरियादियों की भीड़ जुटती थी, अब किसी नेता के दरबार में इतनी भीड़ नही जुटती। नाहिद कैराना  से विधायक है। दूसरी मनव्वर अब तक कोई नहीं बन पाया। मोहम्मद उमर एडवोकेट बताते हैं, मनव्वर लग्जरी नेता नहीं थे उनकी देसी स्टाइल ही उनकी जान था आजकल के नेता मनव्वर स्टाइल की नकल करते हैं, मगर वह परिपक्वता और काबिलियत अभी उनके बेटे में भी नहीं आ पाई है। जनता उनकी दीवानी थी। वह कहीं भी लाख आदमी खट्टा करने की क्षमता रखते थे, इसीलिए फोन पर सुनो मनव्वर बोल रहा हूं सुनकर अफसर हिल जाते थे।

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